एसआईटी के दायरे में जमीन अधिग्रहण के 1500 से अधिक मामले
Noida। यूपी सरकार की ओर से प्राधिकरण में मुआवजा वितरण में हुए कथित घोटाले के लिए गठित एसआईटी की जांच के दायरे में 1500 मुख्य फाइलें हैं। सूत्रों के मुताबिक एसआईटी ने अब तक 700 फाइलें खंगाली हैं। इन फाइलों के आधार पर एसआईटी निष्कर्ष पर पहुंचने की कोशिश कर रही है। इनकी सूची भी बनाई जा रही है।
शनिवार से एसआईटी की जांच चल रही है। सोमवार से एसआईटी के प्रमुख और चेयरमैन बोर्ड ऑफ रेवेन्यू हेमंत राव, एडीजी मेरठ राजीव सभरवाल और मेरठ मंडल की कमिश्नर सेल्वा कुमारी जे ने जांच की कमान संभाल रखी है। सुबह से शाम तक मुआवजा वितरण की फाइलों को खंगाला जा रहा है। फाइलों में अनियमितताएं तलाशी जा रही हैं, ताकि सुप्रीम कोर्ट के सामने जांच रिपोर्ट रखी जा सके। प्रथमदृष्टया 100 करोड़ के घोटाले से परतें हटाने की कोशिश हो रही है। जांच का काम ठीक तरीके से हुआ तो इससे बड़ा घोटाला सामने आ सकता है।
एसआईटी ने 2009 से लेकर अब तक की फाइलें मंगाई हैं। इसमें दो साल पहले की भी फाइलें हैं। जांच के केंद्र में मुआवजा वितरण में किया गया भुगतान है। किसे कितना और कब-कब भुगतान किया गया है यह सब कुछ जांच के दायरे में है। प्राधिकरण के मुताबिक, एसआईटी जो भी फाइलें मांग रही है। वह उन्हें मुहैया करा दिया जा रहा है। जांच के बाद के निष्कर्ष की जानकारी एसआईटी नहीं दे रही है। जांच के दौरान किसी को भी बोर्ड रूम में अंदर नहीं आने दिया जा रहा है।
नोएडा प्राधिकरण की ओर से मुआवजा वितरण के कई मामलों में कोर्ट में हार का मुंह देखना पड़ा। इसमें यह भी देखा जा रहा है कि कौन-कौन से केस प्राधिकरण हारा है और कितना अतिरिक्त मुआवजा देना पड़ा। डीएलएफ के मामले में विरन्ना रेड्डी को प्राधिकरण ने 295 करोड़ का मुआवजा दिया है। इस केस को भी उठाया गया। यहां प्राधिकरण का तर्क है कि कोर्ट से रेड्डी ने और भी अधिक मुआवजे का आदेश पारित कराया, लेकिन बाद में प्राधिकरण ने सेटलमेंट किया और करोड़ो रुपये बचाते हुए 295 करोड़ की राशि दी। इसी तरह से कोर्ट के करीब एक हजार से ज्यादा केसों में प्राधिकरण की कार्यशैली की भी जांच हो रही है। संभव है कि प्राधिकरण के अधिकारी इन मामलों में जांच के दायरे में आ जाएं।
सूत्रों का कहना है कि जमीन अधिग्रहण के दौरान किस तरह से काम किया गया। पेमेंट की फाइलें, कितने अधिग्रहण हुए, कितने बैनामे हुए इन सब फाइलों की मांग एसआईटी ने मांगी। इसमें 64.7 प्रतिशत अतिरिक्त मुआवजे की भी जांच एसआईटी कर रही है। सूत्रों के मुताबिक आपसी सहमति के आधार पर खरीदी गई जमीन और दिए गए मुआवजे में भी घालमेल की शिकायतें हैं। इनकी भी जांच चल रही है।
एसआईटी उन 12 मामलों को भी आधार बनाते हुए जांच कर रही है, जिसमें गलत जानकारी देते हुए मुआवजा उठा लिया गया। इसमें प्राधिकरण के तत्कालीन अधिकारियों ने उन्हें मुआवजा उठाने में सहयोग किया। अमुक किसान और प्राधिकरण के अधिकारियों के बीच साठगांठ के माध्यम से यह सब कुछ हुआ। बाद में जब जांच हुई तो इसका खुलासा हुआ। इन्हीं में से एक मामले में प्राधिकरण के एक अधिकारी को निलंबित करते हुए शासन से बर्खास्तगी की संस्तुति की गई।
एसआईटी की ओर से 2015-16 में किए गए मुआवजा वितरण को केंद्र में रखकर जांच की जा रही है। इस दौरान सबसे अधिक अनियमितताएं बरतने का इनपुट मिला है। लिहाजा, एसआईटी इस वित्तीय वर्ष पर ज्यादा फोकस कर रही है। इसके दो-तीन साल आगे या पीछे किए गए मुआवजा वितरण को संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है। फाइलें खंगालने के बाद मुख्य बिंदुओं को नोट करते हुए कुछ नामों को सूचीबद्ध किया जा रहा है। यह किसके नाम हैं और क्या आरोप है यह सब कुछ रिपोर्ट से ही पता चलेगा।
एसआईटी को पूरा सहयोग किया जा रहा है। बीते 15 वर्ष के मुआवजा वितरण की जांच एसआईटी कर रही है। मुख्य तौर पर जमीन अधिग्रहण की जांच चल रही है। उनकी ओर से जिन फाइलों की मांग की जा रही है, उन्हें मुहैया कराया जा रहा है। - लोकेश एम, सीईओ, नोएडा प्राधिकरण