जीवन बदलने के लिए ज्ञान का एक दीपक ही पर्याप्त , आचार्य प्रशान्त

जीवन बदलने के लिए ज्ञान का एक दीपक ही पर्याप्त , आचार्य प्रशान्त

Ashok Tonger/ Greater Noida

श्रीमद्भगवतगीता में छुपा है सभी समस्याओं का

समाधान

- बाजार की चकाचौंध से नही भीतर के दिये को जलाकर मनाएं दीवाली

- गीता दीपोत्सव में देश के विभिन्न राज्यों से पहुंचे हजारों साधक

Greater Noida। श्रीमद्भगवदगीता में श्री कृष्ण और अर्जुन के बीच एक ऐसा संवाद है, जिसमें सभी मानव समस्याओं की कूंजी छुपी है। इस संवाद की पृष्ठभूमि महाभारत का युद्ध है। गीता में दिए उपदेश आज भी प्रासंगिक हैं और मनुष्य मात्र को जीवन जीने की सही राह दिखाते हैं। 

गौतम बुद्ध यूनिवर्सिटी के ऑडिटोरियम में देशभर से प्रतिभागियों ने दीपावली के उपलक्ष्य में आयोजित गीता दीपोत्सव कार्यक्रम के संवाद सत्र में भाग लिया। प्रशांतअद्वैत संस्था द्वारा आयोजित गीता दीपोत्सव महोत्सव में आचार्य प्रशान्त ने साधको द्वारा पूछे गए सवालों के काफ़ी गहरे और स्पष्ट जबाब दिए। आचार्य प्रशान्त ने कहा कि दीपावली मनाएं लेकिन बोधपूर्ण तरीके से मन मे तो अंधेरा है तमाम तरह के बंधनों ने जकड़ा हुआ है कोई उल्लास नही है दीवाली तभी सार्थक होगी जब मन मे प्रकाश हो ,चित्त शांत नही है बाहरी चकाचौंध से प्रभावित होकर कुछ भी करो उसका कोई लाभ नही होगा। उन्होंने कहा कि

बाहर सौ दीपक भी जल रहे हो उससे कुछ नही होगा भीतर एक दिया पर्याप्त है।बाहर जो भी हो रहा है वह भीतर का प्रतिबिंब हो तो वह सही है ,लेकिन पहले भीतर रोशनी होनी चाहिए।बाहर का प्रकाश एक साधन की तरह होनी चाहिए जो भीतर की रोशनी जगाए,लेकिन दुर्भाग्य से जो चुनाव हम करते है वह गलत ही करते हैं उत्सव को जान सके व सही तरीके से मना सके वह आत्मज्ञान से ही सम्भव है।उन्होंने कहा कि यह तात्कालिक रूप से कुछ अच्छा लग सकता है धर्म के नाम पर ऐसा उत्सव मत मनाए जो केवल मनोरंजन के लिए मनाते हैं।

त्यौहार पर बाहर मिठाई बांटते हैं भीतर कड़वाहट है उसे निकलना है नही तो हम बदल नही सकते कड़वाहट हमेशा दूसरे के प्रति होती है।

श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था भिड़ जाओ युद्ध का अंजाम कुछ भी हो।हम यथार्थ जानने से डरतें हैं जब विवेकानंद की राह नही मिलती तो जिंदगी कचरे की ही होती है उसके लिए पथ प्रदर्शक चाहिए।अगर दुर्योधन के हाथ हस्तिनापुर चला जाता तो देश का इतिहास ही बदल जाता।इसी लिए कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया था।

उन्होने कहा कि गीता ऐसा ग्रंथ है जो मानव को जीने का ढंग सिखाता है। गीता मनुष्य को निष्काम कर्म और प्रेम का पाठ पढ़ाती है। गीता में श्रीकृष्ण ने बताया है कि जीवन में समस्याएं किन वजहों से आती हैं और उनका हल क्या है।आचार्य प्रशान्त के अनुसार अहंकार और अज्ञान ही जीवन की मूलभूत समस्याएं हैं। और विद्या, सही ज्ञान, ही हमारी सभी समस्याओं का अंतिम समाधान है। उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं कि स्वार्थ से प्रेरित हुआ कर्म ही दुख को जन्मता है। और कर्म के केंद्र में निष्कामता होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि गीता में कहा गया है कि इंद्रियों से परे बुद्धि, बुद्धि से परे मन और मन से श्रेष्ठ आत्मा है। शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो चरित्र का निर्माण करे।

आचार्य प्रशांत ने आगे समझाया कि श्रीकृष्ण कहते हैं कि यह शरीर ही वह क्षेत्र है जहां युद्ध होता है। शरीर मे दो सेनाएं हैं: एक पांडव अर्थात पुण्यमयी और एक कौरव अर्थात पापी। मनुष्य हमेशा इन दोनों के बीच में ही उलझा रहता है। 

आचार्य प्रशान्त ने कहा कि आज के दौर में पीड़ा तो सभी के मन मे है। उस पीड़ा से मुक्ति भी सभी को चाहिए, लेकिन मन मे जो अज्ञान और धारणाएं बैठी है उन्हें छोड़ने में पीड़ा होती है। भीतर के झूठ व अहंकार को हम इतना पोषण दे देते हैं कि वही हमे सत्य लगता है और हम उसे छोड़ने को तैयार नही होते। 

आचार्य प्रशान्त ने कहा कि हम झूठी कल्पनाओं, अंधविश्वास के आदि हो चुके हैं। हमारे धर्म ग्रँथ ही हमे सही जीवन जीने की प्रेरणा देते है। और हम उनकी तरफ जाने को तैयार नही होते, जिसकी वजह से दुख झेलते हैं। अगर हमारे पास कोई सही लक्ष्य नही है तो मन गलत धारणाओं को पकड़ ही लेगा और अंततः दुख का निर्माण करेगा। आचार्य प्रशान्त ने सत्र में पहुंचे करीब दो हजार साधको की जिज्ञासाओं को भी सुना व उनके जीवन से जुड़े प्रश्नों का जवाब दिया।

 दीपोत्सव कार्यक्रम में भजन संध्या में संत कबीर के दोहों पर भी विस्तार से चर्चा हुई।