क्या हिंडन और यमुना नदी के आसपास बसे गांवों का पानी जहरीला हो गया?

Noida: यमुना और हिंडन नदी के पानी की गुणवत्ता बेहद खराब स्थिति में पहुंच गई है, क्योंकि नदियों में बिना ट्रीट किए सीवर का पानी, मल, औद्योगिक कचरे और केमिकल को बहाया जा रहा है। बुधवार को जारी हुई उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (UPPCB) की तीन महीने की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ। रिपोर्ट कहती है कि आने वाले समय में हालत और चिंताजनक हो सकती है। इसी के कारण नदियों के आसपास बसे गांवों में ग्राउंड वॉटर खराब हो गया है और बीमारियां फैल रही हैं।
ओखला बैराज में पानी की बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) साल 2024 के जनवरी में 44, फरवरी में 50, मार्च में 53, अप्रैल में 53, मई में 60, जून में 50, सितंबर में 52 मिलीग्राम लीटर दर्ज की गई। मार्च से अब तक बीओडी के स्तर में काफी वृद्धि हुई है। बीओडी उस स्तर को कहते हैं, जो यह बताता है कि पानी में बैक्टीरिया को कितनी ऑक्सीजन मिल रही है। मानकों के अनुरूप बीओडी का स्तर नदी में 3 एमजी प्रति लीटर या उससे कम होना चाहिए।
हिंडन को लेकर भी स्थिति काफी चिंताजनक रही। ताजा रिपोर्ट में इस साल 2024 में जनवरी में 36, फरवरी में 42, मार्च में 40, अप्रैल में 38, मई में 42, जून में 50, सितंबर में 52, अक्टूबर 44 मिलीग्राम लीटर दर्ज BOD दर्ज की गई, जबकि डिजॉल्व ऑक्सीजन 0 एमजी है, जो निल है। फीकल बैक्टीरिया 79 लाख है, जो शरीर में इन्फेक्शन पैदा करता है।
यमुना का डिजॉल्व ऑक्सीजन 0 एमजी है, यह डेढ़ से 3.2 एमजी प्रति लीटर होना चाहिए। एंजियो फीकल बैक्टीरिया 79 लाख है, जो शरीर में इन्फेक्शन पैदा करता है। यह मानक के अनुसार 500 एमपीएन होना चाहिए।
हिंडन और यमुना नदी के संगम पर मोमनाथल के पास पानी में घुले हुए आयनों की मात्रा (कंडक्टिविटी) खतरनाक स्तर पर पाई गई। पानी की कठोरता (Hardness) भी काफी अधिक पाई गई, जिसमें कुछ स्थानों पर यह 500 mg/L तक पहुंच गई, जो पीने के पानी की स्वीकार्य सीमा (300 mg/L) से काफी अधिक है।
संगम स्थल पर पानी में घुली ऑक्सीजन का स्तर चिंताजनक स्थिति में है। सभी सैंपलिंग पॉइंट्स पर DO का स्तर 1.5 से 3.2 mg/L के बीच रहा, जबकि स्वस्थ जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिए न्यूनतम 5 mg/L आवश्यक है।
जैविक प्रदूषण का संकेत देने वाले BOD का स्तर 5 mg/L से 15 mg/L के बीच पाया गया। विशेष रूप से हिंदन नदी के संगम के बाद के स्थानों पर यह स्तर सबसे अधिक पाया गया। यह औद्योगिक और घरेलू कचरे को नदी में बहाने के कारण होता है।
सैंपल में काले रंग की झलक और तीव्र दुर्गंध पाई गई, जो औद्योगिक डिस्चार्ज और अनट्रिटेड वॉटर और वेस्ट को इसमें डालने की ओर इशारा कर रही है। पर्यावरणविद् विक्रांत तोंगड़ ने बताया कि रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि प्रदूषण नियंत्रण के नियमों के सख्त पालन और निगरानी में सुधार की सख्त आवश्यकता है। DO के निम्न और BOD के उच्च स्तर से गंभीर संकट का संकेत मिलता है, जो जैव विविधता और मानव स्वास्थ्य दोनों के लिए हानिकारक है।
विक्रांत तोंगड़ ने सुझाव दिया है कि औद्योगिक कचरे को रोकने के लिए जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम 1974 के नियमों का कड़ाई से पालन कराया जाए। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स (STPs) को अपग्रेड करना जरूरी। यह सुनिश्चित किया जाए कि ट्रीटेड पानी को नदी में छोड़ने से पहले मानकों पर खरा उतारा जाए। जन जागरूकता अभियान चलाया जाए। सरकारी एजेंसियों, उद्योगों और नागरिकों के बीच के प्रयासों से ही इस प्रदूषण संकट का समाधान संभव है।