मायावती के गढ़ में ही बसपा का हो गया सूपड़ा साफ

मायावती के गढ़ में ही बसपा का हो गया सूपड़ा साफ

Noida: बीएसपी सुप्रीमो मायावती का गृह जनपद होने के बावजूद गौतमबुद्ध नगर से बीएसपी का सूपड़ा साफ हो गया है। कहां एक तरफ बीएसपी इस बार जोर-शोर से यह दावा कर रही थी कि बीएसपी के रिजर्व वोट बैंक के साथ ठाकुरों का वोट भी उन्हें मिल रहा है। दावा था कि ठाकुर इस बार बीजेपी से नाराज हैं और इसका सीधा फायदा बीएसपी को मिल रहा है। वहीं, मंगलवार को नतीजे सामने आने के बाद देखा गया कि जीत तो दूर की बात बीएसपी दूसरे नंबर पर भी अपने आप को खड़ा नहीं कर पाई। जबकि एक समय वह था जब बीएसपी प्रत्याशी सुरेंद्र नागर ने 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी से प्रत्याशी डॉ. महेश शर्मा को हरा दिया था। हालांकि जीत का अंतर मात्र 15 हजार के करीब था लेकिन कांटे की टक्कर से बीएसपी ने जीत नाम नाम की थी।

बता दें कि इस बार लोकसभा चुनाव में गौतमबुद्ध नगर सीट पर नामांकन प्रक्रिया पूरी होने के बाद बीएसपी प्रत्याशी व उनके समर्थकों ने ग्रामीण वोटरों में बीएसपी का जोश होने का लगातार दावा किया था। हालांकि देखने में आया की बीएसपी प्रत्याशी व उनकी टीम ने शहरी वोटरों से संपर्क साधने में दूरी बनाए रखी, खासकर नोएडा में बीएसपी का जनसंपर्क अभियान पूरे चुनाव में गायब रहा। जेवर, खुर्जा और सिकंदराबाद में बीएसपी अपने आपको लगातार सबसे आगे होने का दावा कर रही थी। ठाकुर बाहुल्य गांवों में जाकर लगातार जनसंपर्क किया गया और दावा करते रहे कि ठाकुर वोट उनके साथ है। वहीं बीएसपी ने अपने रिजर्व वोट बैंक को रिजर्व रखने में भी खास सक्रियता नहीं दिखाई। पूरा फोकस ठाकुर वोट बैंक को साधने पर लगाया। मंगलवार को आए चुनावी नतीजों ने यह साफ कर दिया कि नोएडा और दादरी तो छोड़ दीजिए सिकंदराबाद, खुर्जा और जेवर में भी बीएसपी अपना रिजर्व वोट बैंक तक नहीं बचा पाई।

साल 2009 में जीत हासिल करने वाली बीएसपी इस बार गौतमबुद्ध नगर सीट पर फाइट से पूरी तरह बाहर नजर आई। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि पार्टी की गतिविधियां पूरी तरह से निष्क्रिय पड़ी हुई हैं। यहां तक कि आंबेडकर जयंती के अलावा किसी भी कार्यक्रम में बीएसपी की सहभागिता दिखाई नहीं देती। बीएसपी के जिला कार्यकारिणी के पदों पर पदाधिकारी भी इतनी सुस्ती बनाए हुए हैं कि किसी में पार्टी का पदाधिकारी बनने का भी उत्साह नहीं है। राजनीतिक जानकारों की मानें तो इसका सबसे बड़ा का बीएसपी सुप्रीमो का सक्रिय न होना है। जब हाईकमान स्तर से ही सक्रियता और उत्साह नहीं है तो नीचे वाले भी पार्टी के वोट बैंक को बचाने का प्रयास नहीं कर रहे हैं।