गौतमबुद्ध नगर में जनप्रतिनिधियों के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन कितना वाजिब -कर्मवीर नागर प्रमुख
Greater Noida l चुनावी माहौल शुरू होते ही जनप्रतिनिधियों के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन होना एक आम प्रचलन सा हो चला है जैसा कि हाल ही में गौतम बुद्ध नगर में देखने को मिल रहा है। जनप्रतिनिधियों के विरुद्ध विरोध प्रदर्शनों के वाजिब और गैरवाजिब होने की बात करें तो अगर यह किसी स्वार्थ परक राजनीति से प्रेरित न हो तो यह स्वस्थ और मजबूत लोकतंत्र की पहचान है। क्योंकि लोकतंत्र में हर किसी को अपनी बात कहने का अधिकार है। लेकिन प्रायः यह भी देखा गया है कि अधिकतर जनप्रतिनिधि इस तरह के विरोध को व्यक्तिगत मानकर विरोध प्रदर्शन करने वालों के प्रति खुन्नस रखने लगते हैं। जो लोकतंत्र में वाजिब प्रतीक नहीं होता ।
चुनावी माहौल में जनप्रतिनिधियों के विरुद्ध जनता द्वारा किये जाने वाले विरोध प्रदर्शन के असल कारणों पर नजर डालें तो चुनावी वादों पर खरे न उतरना, विकास न करने का आरोप प्रत्यारोप, क्षेत्र के मतदाताओं के बीच 5 वर्ष के कार्यकाल के दौरान उनकी समस्याओं पर गौर न फरमाना और उनके सुख दुख में शामिल न होने का आरोप आमतौर पर लगाया जाता है। लेकिन यहां यह पहलू भी अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए कि लोकसभा सीट का दायरा बहुत बड़ा होता है और जनप्रतिनिधियों को चुनाव क्षेत्र के अलावा संसद सत्र और पार्टी की अन्य गतिविधियों में भी समय देना होता है।
गौतम बुद्ध नगर में जनप्रतिनिधियों के विरुद्ध हाल ही में शुरू हुए विरोध प्रदर्शनों पर गंभीरता से नजर डालें तो गौतम बुद्ध नगर में मूल रूप से निवास करने वाली ज्यादा संख्याबल वाली जातियों का गौतमबुद्ध नगर सीट पर राजनीतिक वर्चस्व कम होना भी विरोध प्रदर्शनों का एक अहम् कारण माना जा रहा है। जानकारी में आया है कि बाहर से आकर नोएडा, ग्रेटर नोएडा क्षेत्र में बसे लोगों के संख्या बल के आधार पर राजनीतिक दलों द्वारा टिकट तय करने की वजह से भी स्थानीय लोग खासे आहत नजर आ रहे हैं। जबकि बाहर से आकर बसे लोगों के मूल निवासी जनपदों में भी इनकी जातिगत गणना वहां टिकट निर्धारण में भूमिका निभा रही है ।
लोगों की राय में गौतम बुद्ध नगर के मूल निवासियों की राजनीतिक हक़ और वर्चस्व की लड़ाई इसलिए भी वाजिब नजर आती है क्योंकि गौतम बुद्ध नगर स्थित तीनों प्राधिकरणों द्वारा किसानों की भूमि कौड़ियों के भाव अधिग्रहित किए जाने बाद जहां एक तरफ यहां के वाशिन्दे रोजगार विहीन हो गए हैं वहीं अब जनपद की राजनीति से बेदखल होने की वजह से स्थानीय वाशिन्दे स्वयं को तिरस्कृत महसूस कर रहे हैं। क्योंकि उनकी आवाज नहीं उठाई जा रही है।
इसके अतिरिक्त नोएडा और ग्रेटर नोएडा के शहरी क्षेत्र में मतदाताओं की बढ़ती तादाद की वजह से अधिकतर जनप्रतिनिधियों का गांवों के विकास और ग्रामीणों की समस्याओं की तरफ कम ध्यान देना और शहरी क्षेत्र के विकास और समस्याओं पर अधिक फोकस करना भी कहीं ना कहीं जनप्रतिनिधियों के प्रति नाराजगी का कारण बन रहा है। जैसा कि देखा जा रहा है कि शहरी क्षेत्र में स्थित सेक्टर्स और हाउसिंग सोसायटियों में तो जनचौपाल लगाकर वहां के वाशिंदों की समस्याओं का निस्तारण जनप्रतिनिधि भी करते नजर आ रहे हैं और वहां की आरडब्ल्यूए भी। लेकिन जनपद गौतम बुद्ध नगर के गांव देहात स्लम बस्तियों में तब्दील होते नजर आ रहे हैं। जनपद गौतम बुद्ध नगर के उन 288 गांवों का दुख दर्द सुनने वाला तो कोई भी नहीं है जहां पंचायतों का पुनर्गठन होना भी बंद हो गया है। आज गौतमबुद्ध नगर के चुनिंदा नेता सत्ताधारी पार्टी में होने के बावजूद गौतम बुद्ध नगर के किसी भी जनप्रतिनिधि की तरफ से गौतमबुद्ध नगर में पंचायत पुनर्गठन की आवाज तक न उठाया जाना भी लोगों की नाराजगी का सबब बन रहा है। जबकि उत्तर प्रदेश के अन्य औद्योगिक प्राधिकरण क्षेत्रों में आज भी पंचायतों का पुनर्गठन पूर्ववत हो रहा है। ऐसे में भले ही जन प्रतिनिधि अथवा उनके समर्थक इन विरोध प्रदर्शनों को किसी दूसरे नजरिए से देख रहे हों लेकिन ग्रामीण क्षेत्र के आम मतदाता जनप्रतिनिधियों के विरुद्ध इस तरह के विरोध प्रदर्शनों को इसलिए सही ठहरा रहे हैं क्योंकि किसानों की समस्याएं जस की तस नजर आ रही हैं। नोएडा, ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण क्षेत्र के किसान लगातार आंदोलन रत नजर आ रहे हैं। किसानों का कहना है कि उन्हें झूठे आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला। दोनों प्राधिकरण घोटाले के केंद्र बन गए हैं लेकिन इन घोटालों के संबंध में स्थानीय जनप्रतिनिधियों की कभी चुप्पी टूटती नजर नहीं आई।
अगर समय रहते जनप्रतिनिधियों और राजनीतिक दलों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया तो निश्चित तौर पर लोगों का विरोध प्रदर्शन के तौर पर जताया गया गुस्सा ईवीएम के बटन पर भी उतर सकता है। हालांकि अभी लोकसभा चुनाव में समय है अब देखना यह है कि गौतम बुद्ध नगर में ऊंट किस करवट बैठता है और इस बीच जनप्रतिनिधि और लोकसभा सीट के दावेदार क्षेत्र के मतदाताओं को कितना संतुष्ट कर पाते हैं ?