ग्रेनो के बाजार मे NCERT ki कमी, अभिभावक परेशान

ग्रेनो के बाजार मे NCERT ki कमी, अभिभावक परेशान

Greater Noida: उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में अभिभावक एनसीईआरटी की किताबें न मिलने से परेशान हैं। जिले के सीबीएसई, सीआईएससीई और यूपी बोर्ड के स्कूलों में नए सत्र का आगाज हो गया है। प्राइवेट स्कूलों में तीसरी से लेकर 12वीं कक्षा तक एनसीईआरटी की किताबें प्रयोग में लाने के लिए शासन स्तर से निर्देश हैं। बच्चों ने भी स्कूल जाना शुरू कर दिया है, लेकिन बाजारों में एनसीईआरटी की किताबें उपलब्ध न होने से मजबूरी में अभिभावकों को निजी प्रकाशन की किताबें मोटे दामों पर खरीदनी पड़ रही हैं। शिक्षा विभाग और जिला प्रशासन अनजान बना हुआ है।

जिले में माध्यमिक शिक्षा विभाग के 152, जबकि 300 से अधिक प्राइवेट स्कूल हैं। इनमें एनसीईआरटी की किताबों से पढ़ाई कराई जाती है। प्राइवेट स्कूलों में नया सत्र शुरू हो गया है। अभिभावक बच्चों की पढ़ाई के लिए किताबें और अन्य चीजें ले रहे हैं। हालांकि एनसीईआरटी की तमाम विषयों की किताबें बाजारों से गायब हो गई हैं। जिन स्कूलों में यहां की किताबें लगी हैं, उनके विद्यार्थी और अभिभावक परेशान हैं।

अभिभावक आशीष दुबे ने बताया कि सत्र शुरू हो गया है, लेकिन बाजार में एनसीईआरटी की कई विषयों की किताबें नहीं मिल रही हैं। अधिकांश स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें चलन में हैं। पुरानी किताबों को प्रयोग नहीं करने देते हैं। अभिभावक सागर गुप्ता ने बताया कि मेरा बच्चा छोटी क्लास में है। उसके लिए मजबूरी में निजी प्रकाशन की किताब खरीदी हैं। कॉपी, पेंसिल स्कूल से खरीदने के लिए बाध्य किया जा रहा है।

रॉयल बुक डिपो के संचालक राजेश कुमार ने बताया कि एनसीईआरटी की एक किताब 50 से 60 रुपये में मिलती है। वहीं निजी प्रकाशकों की किताबें 300 से 400 रुपये में मिल रही हैं। तीसरी कक्षा में एनसीईआरटी की पांच किताबें 300 से 400 रुपये में मिल रही हैं। वहीं निजी प्रकाशकों की किताबें चार से पांच हजार रुपये में मिल रही हैं। नया सत्र करीब आते ही एनसीईआरटी की किताबों की डिमांड बढ़ जाती है। पहले के ऑर्डर और मांग के आधार पर ही किताबों को प्रिंट कराया जाता है। स्कूलों की ओर से दो-तीन माह पहले स्थिति स्पष्ट नहीं करने से हर साल परेशानी झेलनी पड़ती है।

अभिभावक रति गुप्ता कहती हैं कि मैंने अपने बच्चे की 12वीं कक्षा की एनसीईआरटी की किताबें गाज़ियाबाद से ली हैं। यहां पर कोई किताब नहीं मिल रही है, स्कूल वाले निजी प्रकाशन की लेने के लिए बोल रहे हैं। निजी प्रकाशन की किताबें महंगी हैं। हालांकि अब स्कूल से मजबूरी कॉपी लेनी होगी, क्योंकि उनकी मोहर उस पर लगी होती है।