यूपी रेरा में भी बायर्स को नहीं मिल रही राहत, बिल्डरों की मनमानी जारी, 14 हजार आदेशों को किया गया नजरअंदाज
Greater Noida: उत्तर प्रदेश में रियल एस्टेट विनियमक प्राधिकरण (RERA) के गठन के बाद भी स्थिति में बदलाव होता नहीं दिख पा रहा है। बायर्स को उनका हक दिलाने के लिए 2017 में रेरा का गठन हुआ। दावा था कि अब सारी बाधाएं दूर हो जाएंगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। नए प्रोजेक्टों के लिए जिस तरह के नियम रेरा में बनाए गए उसे तो भविष्य के लिए कारगर माना जा रहा है, लेकिन पुराने प्रोजेक्टों में फंसे बायर्स का संघर्ष कम नहीं हुआ। इसके अलावा पिछले 7 साल में करीब 14 हजार मामले ऐसे हैं जिनमें बिल्डरों ने रेरा का आदेश नहीं माना। स्थिति यह है कि बायर्स को रेरा का आदेश मनवाने के लिए हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़ रहा है।
रेरा के गठन को लेकर बायर्स की ओर से लड़ाई में अग्रणी रहे पुनीत पाराशर का कहना है कि उस समय हमने जो प्रस्ताव दिया था उसमें सेंट्रल अपीलिएंट ट्रिब्यूनल (सीएटी) की तर्ज पर रेरा का गठन किए जाने की मांग थी। विधानसभा में इस प्रस्ताव में संशोधन करते हुए रेरा का गठन किया गया। अगर सीएटी की तर्ज पर उस समय रेरा का गठन होता तो रेरा के पास कंप्लीट पावर होती। बिल्डर-बायर मामले की लड़ाई में रेरा का आदेश ही अंतिम माना जाता, लेकिन रेरा के गठन में बायलॉज का संशोधन करना बायर्स के साथ धोखे जैसा है।
ऐसे आदेश का बायर क्या करेंगे जिनमें उनकी लड़ाई खत्म ही न हो और बिल्डर उसे मानें ही नहीं। बायर दीपांकर का कहना है कि रेरा का आदेश यदि बिल्डर नहीं मानता है या तो बायर बिल्डर के साथ उसकी शर्तों पर समझौता करें या फिर उसके पास हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में जाकर लड़ाई लड़ने का विकल्प है। अब सवाल यही है कि जब हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में ही अपने पूरे हक की लड़ाई लड़नी है तो फिर पहले ही बायर वहां चला जाए। रेरा में समय क्यों खराब करे।
आंकड़ों की बात करें तो 2017 से लेकर अब तक यूपी रेरा में 3645 प्रोजेक्ट रजिस्टर्ड हैं, जिनमें कि बिल्डरों के ग्रुप हाउसिंग के अलावा प्रदेश की सभी अथॉरिटी के आवासीय प्रोजेक्ट भी हैं। अब तक कुल 54500 केस पीड़ितों ने दर्ज कराए हैं। आंकड़ों के अनुसार, रेरा ने अब तक 43 हजार मामलों में आदेश जारी किए, जिनमें करीब 14 हजार मामले ऐसे हैं जो कि बायर के पक्ष में थे लेकिन बिल्डर आदेश माने ही नहीं। इन 14 हजार में 7600 आदेश रिफंड देने से संबंधित हैं। 4500 आदेश फ्लैट का पजेशन देने से संबंधित हैं।
रिफंड वाले आदेशों में कई बिल्डरों की तो आरसी भी जारी हो गई हैं, लेकिन उसके बाद भी बायर की लड़ाई जारी है। इन 14 हजार आदेशों में से करीब 2000 मामले ऐसे हैं जिनमें दोबारा केस करने पर बिल्डर सेटलमेंट करने के लिए बायर्स के पास आए हैं और मामलों का निस्तारण हुआ है। बाकी कुछ हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में चले गए तो बाकी न्याय मिलने की उम्मीद छोड़कर शांत होकर बैठ गए। इस लड़ाई में बायर्स के कई साल खराब हो गए।
ग्रेनो स्थित यूपी रेरा के कार्यालय में फरवरी 2020 से ई-कोर्ट की सुविधा शुरू हुई थी। इसके बाद ई-कोर्ट से ही रेरा के सभी मामलों की सुनवाई हो रही है। स्थिति यह है कि आय दिन रेरा की ओर से इस सुनवाई में शामिल न होने पर बिल्डरों को सार्वजनिक नोटिस जारी किए जाते हैं। पिछले 6 महीने के रेकॉर्ड की बात करें तो करीब 250 से ज्यादा शिकायतों की सुनवाई में शामिल न होने वाले बिल्डरों को इस तरह के नोटिस रेरा ने जारी किए हैं। इससे साफ होता है कि रेरा को लेकर बिल्डरों में गंभीरता नहीं है।
दरअसल, रेरा ने भी कई बार बिल्डरों पर सख्त कार्रवाई की है लेकिन उनपर कुछ असर नहीं है। रेरा ने 35 से ज्यादा बिल्डरों की करीब 70 से ज्यादा परियोजनाओं का पंजीकरण अलग-अलग कारणों से निरस्त किया है। परियोजना के पंजीकरण के बिना उसका प्रमोशन और मार्केटिंग करने पर कई प्रमोटर्स और एजेंट्स के खिलाफ धारा-3/59 के तहत 40 करोड़ रुपये का अर्थदंड लगाया गया है। यूपी रेरा के आदेशों का उल्लंघन करने पर धारा-63 के तहत 71 प्रमोटर्स के खिलाफ 20.02 करोड़ का अर्थदंड लगाया जा चुका है। कई बिल्डरों कि एसआईटी जांच की सिफारिश भी रेरा ने शासन में भेजी है।
यही नहीं, जिला प्रशासन पिछले करीब एक साल से लगातार बिल्डरों पर रेरा के आदेश क़े तहत बकाया वसूली को लेकर अभियान चला रहा है। इसके बावजूद बिल्डरों में रेरा का डर नहीं स्थापित हो पाया है। उन्हें मालूम है कि ज्यादा से ज्यादा यही होगा कि अगर रेरा का आदेश किसी को मनवाना है तो उसे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ेगा और इतनी बड़ी लड़ाई बायर्स कर नहीं पाते हैं इसलिए बिल्डरों में रेरा का डर स्थापित नहीं हो पा रहा है।