प्राधिकरण को देने होंगे सरकारी जमीन के पुनर्ग्रहण के 534 करोड़,जानिए क्या है मामला

प्राधिकरण को देने होंगे सरकारी जमीन के पुनर्ग्रहण के 534 करोड़,जानिए क्या है मामला

Greater Noida:ग्रेनो प्राधिकरण को सरकारी जमीन के पुनर्ग्रहण का पैसा सरकार को देना होगा। इस संबंध में शासन ने प्राधिकरण को पैसा जमा कराने का आदेश दिया है। प्राधिकरण ने अब तक 32 गांवों में 148.7800 हेक्टेयर जमीन का पुनर्ग्रहण किया है, लेकिन करीब 534 करोड़ रुपये राजस्व जमा नहीं किया है। इस संबंध में प्रशासन की ओर से शासन को प्रस्ताव भेजा गया था जिसका संज्ञान लेकर कार्रवाई की गई है।

प्राधिकरण के अधिसूचित क्षेत्र में ग्राम समाज व सार्वजनिक उपयोग की जमीन है, जो प्राधिकरण की योजनाओं के बीच आ रही है। ऐसे में प्राधिकरण सरकारी जमीन पुनर्ग्रहण कर रहा है। प्राधिकरण को इसका मूल्य सरकार को देना होता है, लेकिन प्राधिकरण ने ऐसा नहीं किया। प्रशासनिक अफसरों ने बताया कि प्राधिकरण ने वर्ष 2014 से 2016 के बीच 32 गांवों में 148.7800 हेक्टेयर सरकारी जमीन ली थी, लेकिन इसके लिए 534 करोड़ रुपये का राजस्व जमा नहीं कराया। इसके लिए प्रशासन ने दो बार शासन को प्रस्ताव भेजा था। अब सरकार ने प्राधिकरण को सरकारी जमीन का पैसा जमा कराने का आदेश दिया है।
स्कूल-कॉलेज की एनओसी से शुरू हुआ टकराव

प्राधिकरण ने स्कूल और कॉलेजों को भूखंड आवंटित किए। इसके बाद स्कूलों ने सीबीएसई से मान्यता मांगी। सीबीएसई के आवेदन पर प्रशासन से दो बिंदुओं पर अनापत्ति प्रमाण पत्र मांगा, लेकिन आवंटित भूखंडों में सरकारी जमीन भी शामिल थी। प्राधिकरण ने इसका पैसा जमा नहीं कराया। इस कारण प्रशासन अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी नहीं कर पाया। अब प्रशासन ने पैसों की मांग की तो प्राधिकरण ने भी अपनी जमीन के पैसों की मांग रख दी। इसके बाद टकराव शुरू हुआ और मामला शासन तक पहुंच गया।

प्राधिकरण ने 57.7752 हेक्टेयर जमीन प्रशासन को दी है। इस जमीन पर कलेक्ट्रेट समेत जिला प्रशासन के विभिन्न कार्यालय बने हैं। प्रशासन की मांग के बाद प्राधिकरण ने अपनी जमीन का पैसा मांगा जो करीब 500 करोड़ के आसपास है। इस संबंध में प्रशासन ने शासन को भी अवगत कराया था।

सरकारी जमीन के पुनर्ग्रहण मूल्य का मामला प्राधिकरण, प्रशासन और शासन के बीच का है, लेकिन इसका असर स्कूल और कॉलेजों के भूखंड आवंटियों पर पड़ रहा है। उन्हें सीबीएसई से मान्यता नहीं मिल पा रही है। मान्यता लेने के लिए काफी स्कूलों ने स्वयं ही मूल्य जमा करा दिया। जबकि यह धनराशि प्राधिकरण को देनी होती है। पिछले दो वर्ष में 30 से अधिक आवंटियों के समक्ष यह समस्या आ चुकी है।