कोर्ट ने निठारी केस पर सवाल उठाते हुए कहा,कड़ियां जोड़ने में नाकाम रही सीबीआई

कोर्ट ने  निठारी केस पर सवाल उठाते हुए कहा,कड़ियां जोड़ने में नाकाम रही सीबीआई

निठारी मामले में सीबीआई कोर्ट से फांसी की सजा मिलने वाले सुरेंद्र कोली और मोनिंदर सिंह पंढेर को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोषमुक्त करार देते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष दोनों के खिलाफ आरोप साबित करने में नाकाम रहा। केंद्र सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की उच्चस्तरीय समिति की सिफारिशों के बावजूद, जस्टिस अश्वनी कुमार मिश्र और जस्टिस एसएएच रिजवी की खंडपीठ ने नोएडा के निठारी हत्याकांड में मौत की सजा पाए सुरेंद्र कोली और मनिंदर सिंह पंढेर को दोषमुक्त करार देते हुए कहा कि जांच एजेंसियों पर जनता का विश्वासघात हुआ है।

खंडपीठ ने कहा कि महिलाओं और छोटे बच्चों की मौत गंभीर चिंता का विषय है। निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार आरोपियों को नहीं दिया जा सकता, खासकर जब उनके जीवन को क्रूर तरीके से मार डाला गया। कोर्ट ने कहा कि नोएडा के सेक्टर-31 स्थित कोठी नंबर डी-5 से बरामद की गई केवल दो चाकू और एक कुल्हाड़ी रेप या हत्या करने के लिए नहीं थीं। पीड़ितों को गला दबाकर मार डालने के बाद उनके शरीर के अंगों को काटने के लिए इनका इस्तेमाल किया गया था। 

कोली और पंढेर के अधिवक्ता ने गंभीर प्रश्न उठाए कि दोनों की गिरफ्तारी से लेकर सीबीआई कोर्ट में फांसी की सजा मिलने तक क्या हुआ। उन्हें पुलिस और सीबीआई की जांच, नरकंकालों की बरामदगी, हत्या में प्रयुक्त हथियारों और ट्रायल कोर्ट की विसंगतिपूर्ण कार्यवाही में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। वकील ने कोली को अदालत में उसके इकबालिया बयान की वीडियो रिकॉर्डिंग की सीडी से कोली और मजिस्ट्रेट के हस्ताक्षर गायब होने की भी शिकायत की।

कोर्ट ने कहा

● अभियोजन पक्ष की विफलता जांच एजेंसियों द्वारा जनता के भरोसे के साथ विश्वासघात से कम नहीं
● बच्चों-महिलाओं की जान जाना गंभीर चिंता का विषय, लेकिन आरोपियों को निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार से वंचित नहीं कर सकते

कानूनविदों का कहना है कि निठारी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के नवीनतम फैसले ने सीबीआई की जांच पर ही सवाल नहीं उठाया, बल्कि सभी जांच एजेंसियों को चौंका दिया है।हाईकोर्ट बार के पूर्व अध्यक्ष व वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश पांडे बबुआ ने कहा कि जांच एजेंसियों को भी विवेचना की प्रक्रिया पर गंभीरता बरतनी चाहिए जब कानून का नजरिया स्पष्ट है कि कोई बेगुनाह को सजा नहीं मिलेगी और कोई दोषी बच नहीं पाएगा। यह भी स्पष्ट हुआ कि परिस्थितिजन्य साक्ष्यों और तथ्यों की कड़ी कमी से पूरी जांच असफल हो सकती है। उनका कहना था कि जांच एजेंसी को कोर्ट में जुर्म स्वीकारोक्ति का बयान तभी टिक पाएगा जब वहां पेश तथ्य और साक्ष्य मेल खाते हैं।

जैसा कि पूर्व अध्यक्ष और सीनियर एडवोकेट अमरेंद्र नाथ सिंह ने कहा, कोर्ट ने पाया कि पंढेर के आवास के पास नर कंकाल बरामद हुए तो लोगों को उससे पहले बदबू आई होगी, लेकिन जांच एजेंसी ने इस बारे में कोई प्रयास नहीं किया। जैसा कि एडवोकेट दिनेश राय व महेश शर्मा ने बताया, जांच एजेंसी ने इस मामले में तकनीकी खामियां भी सामने आई हैं। कोली की निशानदेही पर नर कंकाल, औजार आदि बरामद किए गए, लेकिन इस दौरान पंचायतनामा, वैज्ञानिक परीक्षण आदि नजरंदाज किए गए।