भितरघात और गुटबाजी ना बिगाड़ दे जीत का समीकरण...

भितरघात और गुटबाजी ना बिगाड़ दे जीत का समीकरण...

Greater Noida: यह जरूरी नहीं कि नारों का शोर सब ठीक होने की तस्दीक करे। चुनाव की भीड़ में कुछ जुबान कई बार खामोश भी होती हैं। खामोशी के इसी ज्वालामुखी ने नेताजी की टेंशन बढ़ा दी है। कहीं अपना पत्ता सेट नहीं होने का आक्रोश है तो कहीं समाज की चिंता। अपने समाज को एकत्र करने के लिए सूत्रों के अनुसार सबसे अधिक पंचायतें हो चुकी है। हालांकि पंचायत में युवा ही दिखाई दे रहे हैं कोई बड़ा चेहरा अभी सामने नहीं आए हैं। कई वरिष्ठ नेताओं की गुटबाजी बीजेपी में पिछले कुछ सालों में साफ दिखाई दी थी। हालाकि अब चुनाव में एक मंच पर दिखाई दे रहे है। सपा के कुछ नेताओं का पार्टी छोड़कर जाने का सिलसिला जारी है। इसमें गठबंधन प्रत्याशी को लगातार निराशा हाथ लग रही है।

जेवर और खुर्जा विधानसभा में लगातार राजपूत समाज के लोग पंचायतें कर अपने समाज को एकत्र करने का प्रयास कर रहे हैं। यही हाल दादरी विधानसभा में है यहां भी जाति फैक्टर की तरफ चुनाव मोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। गुर्जर समाज के लोग इस बार अपने समाज के प्रत्याशी को वोट करने की चर्चा कर रहे हैं। जिसको देखते हुए मुख्यालय में बैठे नेताओं को यह टेंशन परेशान कर रही है। भितरघात और गुटबाजी की वजह से लोकसभा चुनाव जैसा जोश अभी नहीं दिख रहा।

नोएडा विधानसभा सीट पर शहरी वोटर अधिकांश बीजेपी को ही वोट करते आए है। लेकिन इस बार बायर्स के मुद्दे और शहरी एरिया से अधिक प्रत्याशी होने के कारण वोट के आंकड़े में बदलाव भी हो सकता है। वहीं दादरी विधानसभा में जाति और गोत्र फैक्टर हमेशा से चुनावी मद्दा बना हैं।

अगर इस बार भी जाति फैक्टर पर वोट बटते हैं तो बीजेपी को काफी नुकसान होगा। हालांकि पिछली बार भी मिहिर भोज को चुनावी मुद्दा बनाया गया था लेकिन जब चुनाव पिक पर आए तो है मुद्दा शांत हो गया। इसी तरह जेवर विधानसभा में फिलहाल जाति का मुद्दा चुनावी मुद्दा बन रहा है। ऐसे में यह वोट बैंक बटता है तो चुनावी समीकरण बदल सकते हैं।

हर बार लोकसभा चुनाव में युवाओं में जोश दिखाई देता है। लेकिन इस बार चुनाव में युवाओं में जोश नहीं दिखाई दे रहा। यहां तक कि चुनाव की चर्चा भी सोशल मीडिया पर दिखाई नहीं दे रही है। दूसरों सोशल मीडिया पर भी इस बार चुनाव के मुद्दे नहीं उठ रहे हैं।